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अरावली: बचाएं या खो दें?
भारत के पश्चिम भाग में राजस्थान में स्थित अरावली पर्वत माला विश्व की सबसे प्राचीनतम पर्वत श्रृंखला तथा गोंडवाना लैंड का अस्तित्व है। राजस्थान की भौगोलिक संरचना में 80% विस्तार के साथ मुकुट के रूप में स्थित 570 मिलियन वर्ष पुरानी यह पर्वत श्रेणी राजस्थान को उत्तर से दक्षिण दो भागों में विभाजित करती है। बनास, लूनी, साखी, साबरमती नदियों का उद्गम स्थल तथा प्राकृतिक, खनिज, वनस्पतियों से परिपूर्ण अरावली राजस्थान की जीवन रेखा है। पत्थर, बजरी के साथ साथ फेल्सपार, सैंडस्टोन, जिप्सम, अयस्क जैसे अकूत सम्पदा का भंडार अरावली आज मानवीय स्वार्थ के कारण खाली हो रहा है।
नैसर्गिक सौंदर्य के पर्याय अरावली के साथ आज अवैध खनन और खनन माफिया जैसे शब्द जुड़ गए हैं। निर्माण गतिविधियों के लिए पहाड़ों के पत्थर और नदियों की बजरी ही सर्वश्रेष्ठ की धारणा के कारण अवैध बजरी खनन की प्रक्रिया ने भयावह और हिंसक रूप ले लिया है।
आज राजस्थान के 33 में से 29 जिलों में बिना रोक टोक चल रहे अवैध खनन के कारण अरावली की 128 पहाड़ियों में से 31 पहाड़ गायब हो चुके हैं। क्या यह चिंतनीय विषय नहीं है कि -अकूत खनिज सम्पदा का भंडार और संरक्षित धरोहर सरकार की लापरवाही के कारण आज खनन माफिया के निशाने पर है। सेंट्रल एम्पावरमेंट कमिटी 2018 की रिपोर्ट के अनुसार 1968 के बाद से राजस्थान में अवैध खनन के कारण अरावली श्रेणी का 25% हिस्सा गायब हो चुका है। पिछले 10 सालों में 200 से 400 फीट ऊँचे पहाड़ ख़त्म हो गए उनकी जगह अब गहरे तालाब दिखाई देते हैं।
सरकारी नियम कानूनों का उल्लंघन करते हुए प्रतिबंधित वन क्षेत्रों में भी हो रहे अवैध खनन के कारण वन्य जीवों तथा वनस्पतियों की प्रजातियों का अस्तित्व भी अब खतरे में है। गुजरात से दिल्ली तक 692 किमी. तक फैली यह पर्वत श्रृंखला का माउन्ट आबू (गुरु शिखर ) ,रायसीन हिल्स (राष्ट्रपति भवन ) जैसे आकर्षण के साथ साथ पौराणिक महत्व भी है। ब्रज भूमि ( भरतपुर )के आस पास का पहाड़ी क्षेत्र भगवान श्री कृष्ण की लीला स्थली रहा है और इसलिए ब्रज की संस्कृति और अस्तित्व इन पहाड़ों में ही है।
कठोर कानूनी सक्रियता के आभाव के कारण अमरबेल की तरह पनप रहा खनन माफिया राजस्थान के लिए नासूर बन गया है। प्रशासन की लापरवाही के कारण अरावली में निरंतर हो रहे विस्फोट और बजरी खनन ने नदियों की भी दशा बदल दी है, सरकार को राजस्व का नुकसान हो रहा है और जन भावनाएं भी आहत हो रही है। जिस गति से अवैध खनन जारी है उसका दुष्परिणाम क्या होगा ये प्रबुद्धजन जानकर भी अनभिज्ञ हैं।
अरावली पर्यावरण का सुरक्षा कवच है यह भूजल स्तर को बनाए रखता है,वन्य जीवों का वनस्पतियों का संरक्षण स्थल है और सबसे महत्वपूर्ण यह मरुस्थल को आगे बढ़ने से रोकता है।
अब आवश्यकता है कि महानगरीय इमारतों की नींव में दबे अरावली के पत्थरों के प्रति सरकार संवेदनहीनता नहीं अपितु सक्रिय कठोर कानून बनाए ताकि अरावली को विलुप्त होने से बचाया जा सके क्यूँकि अरावली है तो हरियाली है, अरावली है तो जीवन है।
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